भीग भीग कर इतने सीम गए हैं
कल के सूरज की ज़रूरत है हमें
हर रिशते के खौफ़ से बेखौफ़ सोए हैं
एक पहर की नींद की ज़रूरत है हमें
दर्द के बढ़ने से खुद बेदर्दी हो गए
हरज़ाई के कत्ल की ज़रूरत है हमें
ज़िन्दा लोग कफ़न में ज़माने के सोए हैं
बस मुर्दों को बदलने की ज़रूरत है हमें
अनजाने सफ़र पर अपने निकल गए हैं
इसकी सफ़ल साधना की ज़रूरत है हमें
गुरुवार, 21 अगस्त 2008
ज़रुरत है हमें
विधा: कविता
प्रस्तुतकर्ता रचना गौड़ ’भारती’ पर 7:50 pm 11 टिप्पणियाँ
हाइकु
रक्त का दान
हो जनकल्याण
कर्म महान
विधा: हाइकु
प्रस्तुतकर्ता रचना गौड़ ’भारती’ पर 7:47 pm 1 टिप्पणियाँ
दुहाई
ज़मीं आस्मां से पूछती है
मेरे आंचल में सारी कायनाथ रहती है
चांद तो दागी है फिर भी
खूबसूरती की दुहाई
इसी से क्यों दी जाती है
विधा: शेर
प्रस्तुतकर्ता रचना गौड़ ’भारती’ पर 7:44 pm 0 टिप्पणियाँ
असर
पूछे सुबहे विसाल जब हमारा हाल
पसीने से दुपट्टा भीग जाता है
शमां अंधेरो में जलाते है इसका
असर परवानो पे क्यों आता है
विधा: शेर
प्रस्तुतकर्ता रचना गौड़ ’भारती’ पर 7:42 pm 0 टिप्पणियाँ
पुकार
कतरा-कतरा दस्ते दुआ पे न्यौछावर न होता
जो तेरे शाने का कोई हिस्सा हमारा भी होता
हम तो मस्त सरशार थे अपनी ही मस्ती में
यूं बज़्म में बैठाकर तुमने गर पुकारा न होता
विधा: शेर
प्रस्तुतकर्ता रचना गौड़ ’भारती’ पर 7:38 pm 1 टिप्पणियाँ
मानव
विधा: कविता
प्रस्तुतकर्ता रचना गौड़ ’भारती’ पर 7:26 pm 0 टिप्पणियाँ